पोप : पुरोहित पुलित्सी का प्रेरणामय जीवन
माफिया द्वारा मारे गए पुरोहित की मृत्यु की तीसवीं वर्षगांठ पर, पोप ने पलेरमो के महाधर्माध्यक्ष को एक पत्र प्रेषित करते हुए लोकधर्मियों और युवाओं को अपराध से बचाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। वह पुरोहितों को अपनी सेवा में साहसी होने और आज के कई मानवीय और सामाजिक घावों का सामने निडर बने रहने को प्रोत्साहित किया।
पोप फ्रांसिस ने पुरोहित पुलित्सी की शहादत की तीसवीं वर्षगाँठ के अवसर पर पलेरमो महाधर्माध्यक्ष के नाम एक पत्र प्रेषित करते हुए धर्मप्रांत को अपनी निकटता और प्रोत्साहन प्रदान किया।
पुरोहित पिनो पुग्लिसी की मौत के तीस साल हो गये जिनकी हत्या 15 सितंबर की शाम को पलेरमो के ब्रांकासियो जिले में संगठित अपराधियों ने कर दी, उन्हें 25 मई 2013 को धन्य घोषित कर दिया गया। इस अवसर पर पोप फ्रांसिस ने खुद सिसली की राजधानी के महाधर्मप्रांत संग आध्यात्मिक एकात्मकता के भाव प्रकट किये। महाधर्माध्यक्ष कोराडो लोरेफिस को लिखे गये पत्र में संत पापा ने पुरोहितों को विश्वास के साक्ष्य शहीद के उदाहरण का पालन करने, गरीबों, सबसे कमजोर और सबसे परित्यक्त लोगों की देखभाल करने, चुप्पी के खिलाफ एकजुट होने और युवाओं का विशेष ध्यान देने का आहृवान किया। संत पापा ने इस बात की याद की कि पुरोहित पुग्लिसी ने अपने भौतिक जीवन का अंत दुखद रूप से उसी स्थान पर किया जहाँ उन्होंने “शांति के शिल्पकार” बनने का फैसला किया था, जो मुक्तिदाता के शब्द रूपी बीज को विस्तृत करता है, जो कई “शुष्क और पथरीले स्थानों में प्रेम और क्षमा की घोषणा करता है”, जहाँ ईश्वर “अच्छे गेहूं और जंगली पौधों दोनों को एक साथ बढ़ने देते हैं।”
पोप फ्रांसिस ने लिखा कि यह उनका जन्मदिन था जब पुरोहित को सड़क पर मार दिया गया। वास्तव में, ब्रांकासियो जिले की सड़कें, उनकी कर्मभूमि थीं जहाँ लोगों से मिलते हुए उन्होंने अपने प्रेरिताई का कार्य किये। उस भूमि में जिसे वे जानते थे और जिसकी वे देखभाल करते, पुनर्जीवित करने वाले सुसमाचार के जल से सींचने को कभी नहीं थके। क्योंकि उनकी चाह थी कि “हर कोई अपनी प्यास बुझाने में सक्षम हो और जीवन की कठोरता का सामना करने के लिए आत्मा की ताजगी का आनंद ले सके जो हमेशा दयालु नहीं रही है”। “मुझे इसकी उम्मीद थी”- पिनो ने मुस्कुराते हुए अपने हत्यारे से कहा। पोप ने पांच साल पहले पलेरमो की अपनी यात्रा में यूखरीस्तीय बलिदान के दौरान उनकी मुस्कुराहट का उल्लेख किया था जो अब भी “एक दिव्य रोशनी के रूप में अंदर तक पहुंचती और हृदय को प्रकाशित करती है”।
पोप फ्रांसिस ने आगे लिखा कि “येसु के उदाहरण का अनुसरण करते हुए, पुरोहित पिनो प्यार में पूरी तरह डूब गये” जिसमें “नम्रता और नम्र, एक अच्छे चरवाहे के सभी गुण मौजूद थे”। वे एक-एक करके उन लड़कों को जानते थे जिन्हें माफिया ने उसने छीनने की कोशिश की थी। वे “ईश्वर के उस व्यक्ति की गवाही हैं जो छोटों और असहायों से प्यार करता, उन्हें स्वतंत्रता, जीवन से प्यार करने और उसका सम्मान करने की शिक्षा देता था”। पलेरमो के पुरोहित, संत पापा ने कहा, “परिवार की रक्षा के लिए अथक रूप से प्रतिबद्ध थे, उन्होंने बहुत से बच्चों की देख-रेख की जो जल्द ही वयस्क हो गए और पीड़ा झेलने के लिए अभिशप्त हुए”, उन्होंने उन्हें “अधिक सम्मानजनक जीवन मूल्यों” के बारे में बताया। “वे वहाँ रुके नहीं, उन्होंने उन्हें खून बहने तक क्रूस के रुप में गले से लगाये रखा और उनके लिए अपने को समर्पित कर दिया”।
पोप फ्रांसिस सिसली के चरवाहों से कहते हैं कि वे वर्तमान समय की असंख्य मानवीय और सामाजिक घावों के सामने न रुकें, बल्कि उन्हें सांत्वना के तेल और करुणा के मरहम से ठीक करें। “गरीबों के प्रति विकल्प अत्यावश्यक है, वे ऐसे चेहरे हैं जो हमसे सवाल करते हैं और हमें भविष्यवाणी की ओर अग्रसर करते हैं – उन्होंने कहा कि प्रेरिताई हेतु आत्ममंथन जरूरी है। “इसलिए मैं आपसे सुसमाचार की सुंदरता को सामने लाने का आग्रह करता हूँ- ईश्वर की कोमलता, उनके न्याय और उनकी दया को दिखाने हेतु निशानियों का उपयोग करें और सही भाषाएं खोजें।” पुरोहित पिनो के “व्यावहारिक और गहन ज्ञान” की याद करते हुए संत पापा ने कहा, वे यह कहना पंसद करते थे, “यदि हम में से प्रत्येक कुछ करता है, तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं”, संत पापा ने सभी को यह जानने के लिए आमंत्रित किया कि भयों पर कैसे काबू पाया जाए, उन्होंने व्यक्तिगत प्रतिरोध तथा एक न्यायपूर्ण एवं भाईचारापूर्ण समाज के निर्माण के लिए मिलकर सहयोग करने की बात को बढ़ावा दिया।
पुरोहित पुग्लिसी ने एक लड़ाई लड़ी “ताकि पतन की चुनौती और अपराध की छिपी शक्तियों के सामने कोई भी अकेला महसूस न करे”, पोप ने लिखा कि “कैसे अलगाव, बंद और गुप्त व्यक्तिवाद उन लोगों के शक्तिशाली हथियार हैं जो दूसरों को अपने हितों के लिए झुकाना चाहते हैं।” इन सारी बातों का उत्तर है, “सम्यवाद, एक साथ चलना, एक शरीर की तरह महसूस करना, सदस्यों को सिर के साथ एकजुट करना”,वे पुरोहितों को “मसीह के संग सद्भाव में रहने हेतु प्रोत्साहित किया, सबसे पहले अपने पुरोहित भाइयों के संग और साथ में धर्माध्यक्ष के संग।
अंत में, पोप फ्रांसिस ने सभी पुरोहितों से, जिन्हें प्रतिदिन अपनी जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है प्रोत्साहन के शब्द व्यक्त करते हुए कहा कि वे हमेशा और हर जगह स्वागत करने वाले अच्छे चरवाहे की अपनी सच्ची छवि बनाये रखें और साहसी बनें। “आप खास कर सबसे कमजोर, बीमार, पीड़ित, प्रवासियों और उन लोगों में आशा पैदा करें जो “गिर गए हैं और फिर से उठने में मदद चाहते हैं”।