पोप : सिनोडल गुणों का अनुसरण करें

पोप फ्रांसिस ने लोकधर्मियों, कलीसियाई आदोलनों और नये समुदायों के प्रतिभागियों से भेंट करते हुए तीन सिनोडल सद्गुणों का अनुसरण करने का आहृवान किया।

पोप फ्रांसिस ने लोकधर्मियों, परिवार और जीवन संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के तहत लोकधर्मियों, कलीसियाई आंदोलनों और नये समुदायों के संचालकों से भेंट की।

सिनोडलिटी की विषयवस्तु से संगोष्ठी में सहभागी हो रहे सभों का अभिवादन करते हुए पोप ने संचालकों को अपने संदेश में कहा कि चुनी गई यह विषयवस्तु एक आध्यात्मिक आंतरिक परिवर्तन की मांग करती है जिसके बिना लम्बे समय तक बने रहने वाले परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं। संत पापा ने आशा व्यक्त की कि यह कलीसिया के अंदर सभी स्तरों पर कार्य करने के लिए एक स्थायी तरीका “कलीसियाई शैली” बने।

आध्यात्मिक परिवर्तन से संदर्भ में जोर देते हुए संत पापा ने तीन “सिनोडल सद्गुणों” ईश्वरीय मनोभाव, विशिष्टता के भाव पर जीत और विनम्र के विकास पर प्रकाश डाला।

ईश्वरीय मनोभाव प्रथम विन्दु के बार में पोप ने कहा कि यह हमें मानवीय सोच से ऊपर उठने का निमंत्रण है जहाँ हम ईश्वर के विचारों को आलिंगन करने हेतु बुलाये जाते हैं। उन्होंने कहा, “किसी कार्य को शुरू करने के पहले हमें यह सोचने कि जरुरत है कि ईश्वर मुझसे, हमें से और इस स्थिति में क्या चहाते हैं। क्या हमारे सोचने का तरीके ईश्वर के विचारों से मेल खाते हैंॽ” अतः उन्होंने पवित्र आत्मा को सिनोडल यात्रा के नायक होने पर जोर दिया जो कलीसिया और व्यक्तगित रुप में ईश्वर की वाणी को सुनने की हमें शिक्षा देते हैं।

पोप ने कहा कि ईश्वर हमारे सोच-विचारों और समुदाय के आदर्शों से बड़े हैं। हम अपने को ईश्वर “तालमेल में बना” न समझें बल्कि निरंतर अपने मनोभावों से ऊपर उठते हुए ईश्वरीय विचारों का आलिंगन करें। यह हमारे लिए पहली चुनौती है।

विशिष्टता पर जीत के संबंध में पोप ने कहा कि हम “बंद घेरे” के प्रलोभन से सावधान रहें। चुने गये लोगों के रुप में चेलों ने अपने को इस प्रलोभन में बंद पाया। विशिष्टता की चुनौतियाँ, हमारे कार्य करने के तरीके सभों के लिए सही हैं, एक छोटे समुदाय में सीमित होना, पदों और प्रतिष्ठा की सुरक्षा” पर ध्यान आकर्षित करते हुए संत पापा ने कहा कि ये सारी बातें हमें “कैदखाने” में रखने की जोखिम में डाला देती हैं।

उन्होंने कहा कि सिनोडलिटी इसके बदले हमें अपने को खुला रखते हुए उन चीजों से परे जाने में मदद करती है, यह हमें लोगों में ईश्वर की उपस्थिति देखने की मांग करती है यद्यपि हम उन्हें नहीं भी जानते हों। यह हमें दूसरों के विचारों को सुनने और उनके दुःख तकलीफों में शामिल होने को प्रेरित करती है, जिनके इर्ग-गिर्द हम अपना जीवन जीते हैं।

विनम्रता के भाव पर पोप ने कहा कि आध्यात्मिक परिवर्तन की शुरूआत नम्रता से होती है जो सभी सद्गुणों की जननी है। यह हमारे विचारों को परिशुद्ध करने में मदद करती है। उन्होंने कहा, “यदि हम अपने में घमंड या हठधार्मिकता के भाव को पाते तो हमें नम्रता की कृपा मांगने की जरुरत है।” यह नम्रता है जो कलीसिया में महान चीजों की पूर्ति करती है क्योंकि इसका ठोस आधार स्वयं ईश्वर का प्रेम है जो हमें कभी असफल होने नहीं देता है।

पोप ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि सिनोडल कलीसिया के निर्माण हेतु आध्यात्मिक परिवर्तन महत्वपूर्ण है जिसके फलस्वरुप “मैं” की जगह हम “हम” के भाव को उत्पन्न होता पाते हैं। “यह नम्रता है जो दूसरों के विचारों को सुनने और कलीसिया की एकता को विभाजनों, तनावों से दूर रखते हुए सुरक्षित रखने में हमारी मदद करती है। वे अपनी सेवा में हताश नहीं बल्कि खुशी का अनुभव करते हैं।” जीवित सिनोडलिटी हर स्तर पर अपने में नम्रता के बिना असंभव है।