पुनर्मिलन पर कोर्स में भाग लेने हेतु नवअभिषिक्त पुरोहित रोम में
प्रेरितिक प्रायश्चित विभाग ने प्रायश्चित पर अपने वार्षिक आंतरिक कोर्स की शुरुआत की, जिसमें दण्डमोचन से लेकर पापस्वीकार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीच संबंधों तक के विषयों पर व्याख्यान और चर्चा की एक सप्ताह लंबी श्रृंखला शामिल है।
प्रायश्चित एवं क्षमाशीलता पर एक सप्ताह का कोर्स रोम में इन दिनों जारी है। वाटिकन के प्रेरितिक प्रायश्चित विभाग द्वारा आयोजित, वार्षिक आंतरिक कोर्स का उद्देश्य है नव नियुक्त पुरोहितों, साथ ही सेमिनारी छात्रों को जो जल्द ही अभिषेक प्राप्त करेंगे, पुनर्मिलन के संस्कार पर "चिंतन और गहन प्रशिक्षण" का अवसर देना।
कोर्स के दौरान, कई अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञ प्रतिभागियों को दण्डमोचन से लेकर पापस्वीकार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीच संबंध जैसे विषयों पर चर्चा करेंगे।
एक प्रेस विज्ञप्ति में, पाठ्यक्रम के आयोजकों ने कहा कि प्राथमिकता "कलीसिया की समझ और दया के अधीन प्रस्तुत ठोस और जटिल मामलों के समाधान" को दी जाएगी। प्रत्येक सत्र के बाद प्रतिभागियों के बीच बहस होगी।
शुक्रवार, 8 मार्च को, जैसे ही मंच समाप्त होगा, प्रतिभागी पोप फ्राँसिस से मुलाकात करेंगे।
कोर्स का उद्घाटन सोमवार दोपहर को प्रेरितिक प्रायश्चित विभाग के प्रमुख कार्डिनल माउरो पियाचेंत्सा ने किया।
उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत आगामी 2025 जयंती वर्ष पर चिंतन करते हुए की, और इस बात पर जोर दिया कि हालांकि इस पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता, पुनर्मिलन का पहलू इस आयोजन के केंद्र में है। जबकि मीडिया, सबसे पहले उन लाखों तीर्थयात्रियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो जुबली के लिए रोम आनेवाले हैं। इस उत्सव के लिए प्रायश्चित का आयाम भी उतना ही आवश्यक है।
हालांकि, कार्डिनल पियाचेंत्सा ने चेतावनी दी, इससे पहले कि क्षमा की "रोशनी" दुनिया में चमके, इसे हम प्रत्येक में चमकना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया, "वास्तव में, हमारे व्यक्तिगत नवीनीकरण के बिना, कलीसिया और दुनिया के नवीनीकरण की आशा करना अकल्पनीय होगा।"
कार्डिनल ने कलीसिया के सुधार के लिए पश्चाताप के महत्व को भी बताया। "सुधार, हर समय आवश्यक है," उन्होंने कहा, "हमारी प्राथमिकताओं के अनुसार 'हमारी' कलीसिया को दोबारा आकार देने में शामिल नहीं है... बल्कि ऊपर से आनेवाली दया से हमारे मानवीय निर्माणों को नष्ट होने देने में शामिल है।"
अंत में, कार्डिनल ने पश्चाताप के युगांतशास्त्रीय आयाम पर विचार किया, जो, उन्होंने कहा, हमें न केवल पृथ्वी की कलीसिया के साथ बल्कि स्वर्ग की कलीसिया के साथ भी एकता में वापस लाता है। कार्डिनल पियाचेंत्सा ने जोर देकर कहा, इस प्रकार पुनर्मिलन हमें "संपूर्ण कलीसियाई निकाय" के साथ मेल कराती है।