कार्डिनल बो: घायल दुनिया में, आइए हम एकजुटता के साथ घुटने टेकें
इस पवित्र सप्ताह में, म्यांमार धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष, यांगून के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स माउंग बो, विश्वासियों से 'युद्ध की उथल-पुथल को रोकने' के लिए और शांति के लिए प्रार्थना में शामिल होने का आग्रह किया साथ ही भली इच्छा वाले लोगों को संत पापा फ्राँसिस के बातचीत और सुलह के आह्वान का स्वागत करने के लिए प्रोत्साहित किया।
म्यांमार, यांगून के धर्माध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स माउंग बो, विश्वासियों से एक साथ मिलकर प्रार्थना करने और "इस घायल दुनिया में" शांति की दिशा में काम करने की अपील की है।
ईस्टर से पहले वाटिकन न्यूज़ को भेजे गए एक संदेश में, म्यांमार के काथलिक धर्माधअयक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स ने सर्वशक्तिमान ईश्वर से संघर्ष के अंधेरे को दूर करने और आशा एवं सद्भाव की एक नई सुबह लाने की प्रार्थना की।
"शांति की सुबह को गले लगाते हुए" शीर्षक के साथ, कार्डिनल का संदेश दुनिया को त्रस्त करने वाले युद्धों विशेष रूप से पवित्र भूमि, यूक्रेन और अपने स्वयं के म्यांमार में हो रहे संघर्षों को स्वीकार करता है और मानवता से शांति के लिए हमारे सामूहिक आह्वान की नींव के रूप में संत पापा फ्राँसिस के ‘बातचीत और सुलह’ के आह्वान का स्वागत करने का आग्रह करता है।"
कार्डिनल बो ने पास्का रहस्य पर विचार करते हुए कहा: "आज दुनिया जिन संघर्षों और समस्याओं का सामना कर रही है, हमें पुनर्जीवित मसीह पर भरोसा करके अपनी आशा को पुनर्जीवित करना चाहिए, जिन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की और हमें सच्चा जीवन दिया।"
उन्होंने कहा, यह आशा, "जीवन में रोशनी पैदा करती है, निराशा को दूर करती है, एकजुटता पैदा करती है" और "हिंसा के उन सभी बीजों का प्रतिकार करती है जो उदासीनता और टकराव की संस्कृति हमारे समाजों में बोती है और युद्धों के लिए जमीन तैयार करती है।"
उन्होंने कहा, "दुनिया मिलकर युद्ध के उपकरणों को शांति के उपकरणों में और सभी भय को अटूट विश्वास में बदलने की प्रतिज्ञा करे।"
उन्होंने प्रार्थना करते हुए अपना संदेश समाप्त किया, "हमारे शब्द भाईचारे की सार्वभौमिक भाषा को प्रतिध्वनित करें, और हमारे कार्य शांति की खोज द्वारा निर्देशित हों।"
म्यांमार के प्रति संत पापा की निकटता
संत पापा फ्राँसिस ने 2017 में म्यांमार और बांग्लादेश दोनों का दौरा किया था। उन्होंने रोहिंग्या शरणार्थियों की पीड़ा के खिलाफ बार-बार आवाज उठाई है।
रोहिंग्या, जिन्हें 1982 से म्यांमार में नागरिकता से वंचित कर दिया गया है, उन्हें राज्यविहीन बना दिया गया है, उन्हें दुनिया में सबसे अधिक उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है और कई दशकों के दौरान वे भूमि या नाव से पड़ोसी देशों में भाग गए हैं।
2 फरवरी 2021 को म्यांमार में सैन्य तख्तापलट ने उनकी समस्याओं को और बढ़ा दिया।
28 जनवरी को देवदूत प्रार्थना के उपरांत म्यांमार पर ध्यान केंद्रित करते हुए, संत पापा फ्राँसिस ने मानवीय सहायता की सुविधा के लिए अपील की, सभी से बातचीत के रास्ते को अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, "अब तीन साल से," "दर्द की चीख और हथियारों की गड़गड़ाहट ने उस मुस्कान की जगह ले ली है जो म्यांमार के लोगों की विशेषता है।"
उन्होंने बर्मी धर्माध्यक्षों की आवाज में अपनी आवाज मिलाते हुए प्रार्थना की कि "विनाश के हथियारों को मानवता और न्याय में वृद्धि के लिए उपकरणों में तब्दील किया जाये।"