ओडिशा के काथलिकों ने कंधमाल के शहीदों के लिए माता मरियम को धन्यवाद दिया

ओडिशा में माता मरियम के तीर्थस्थल पर वार्षिक उत्सव में करीब 25,000 से अधिक लोगों ने भाग लेकर, कंधमाल शहीदों को वाटिकन की मान्यता दिलाने का श्रेय माता मरियम को देते हुए उनके प्रति अपना आभार व्यक्त किया।

परतामहा में माता मरियम तीर्थस्थल की विकास समिति के सचिव सरज नायक ने कहा कि कंधमाल शहीदों के लिए वाटिकन से मान्यता प्राप्त करना "हमारे लिए एक खुशी और गर्व का क्षण था।"

नायक ने मैटर्स इंडिया को बतलाया, "हम कंधमाल के शहीदों के लिए, ईश्वर की मध्यस्थता करनेवाली माता मरियम को धन्यवाद देते हैं, जिन्हें अब ईश सेवकों के रूप में पहचाना जाता है।"

अक्टूबर 2023 को, वाटिकन ने उन 35 लोगों के लिए धन्य घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति दी, जो 2008 में ओडिशा के कंधमाल जिले में ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के दौरान अपने विश्वास के लिए शहीद हो गए थे।

लेंसा डिगल के बेटे सुभाष डिगल भी उन ईश सेवकों में से एक हैं। लेंसा डिगल ने इस वर्ष के उत्सव में भाग लिया था कहा कि वे कंधमाल शहीदों को मान्यता दिलाने का श्रेय माता मरियम को देते हैं।

सिमनबाड़ी पल्ली के एक सबस्टेशन, डिड्राबाड़ी के निवासी को अपने पिता, जो एक प्रचारक थे, के साथ अक्सर परतामहा तीर्थस्थल जाया करते थे।

पवित्र रोजरी की माता मरियम को समर्पित डेरिंगबाड़ी के पल्ली पुरोहित और परकामहा माता मरियम तीर्थस्थल के समिति सदस्य फादर मुकुंद देव ने कहा कि 5 मार्च के समारोह में 25,000 से अधिक तीर्थयात्री शामिल हुए। जिसमें 50 पुरोहित और 25 धर्मबहनें भी शामिल थे।

उन्होंने मैटर्स इंडिया को बतलाया कि भारी संख्या में हर साल इस समारोह में आनेवाले तीर्थयात्री “माता मरियम के बारे कुछ खास चीजें बतलाते हैं और यह हमें येसु के सच्चे एवं योग्य शिष्यों की तरह हमें उन्हें महिमा एवं सम्मान देने में मदद करता है।”

कटक भुनेश्वर के महाधर्माध्यक्ष जॉन बरवा जिन्होंने समारोही मिस्सा का अनुष्ठान किया, अपने उपदेश में कहा कि माता मरियम परतामहा में हर साल हमारा आनन्द, दुःख, पीड़ा, आशा और आकाक्षा बांटती हैं।

"माता मरियम हमारी कठिनाइयों, कष्टों, बाधाओं और प्रतिकूल परिस्थिति को जानती है इसलिए वे उन्हें अपने बेटे हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के पास पहुँचाती हैं," जिन्होंने अक्टूबर 2023 में वाटिकन के संत प्रकरण विभाग से कंधमाल शहीदों के लिए "कोई आपत्ति नहीं" (नो ऑब्जेक्शन) पत्र प्राप्त किया था।

महाधर्माध्यक्ष बारवा ने कहा, “माँ मरियम हमें हमारे बीच हमारे प्रभु येसु की उपस्थिति की शक्ति सिखाती हैं जो असंभव को संभव बना सकते हैं।"

इस तीर्थस्थल को उस घटना के बाद बनाया गया, जब एक हिंदू विधवा कोमोलादेवी, 5 मार्च 1994 को जलावन की लकड़ी लाने परतामहा पहाड़ गई थी। जहाँ उन्हें लंबे बालों के साथ एक दाढ़ीवाले व्यक्ति के दर्शन हुए, जो कुछ समय बाद गायब हो गये थे। उसके बाद विधवा ने एक सफेद कपड़े पहने हाथों में रोजरी माला लिए एक महिला को देखा था।

महिला ने विधवा से कहा था कि वह स्थानीय काथलिक पुरोहित से एक गिरजाघर बनाने का अनुरोध करे ताकि लोग पापियों के प्रायश्चित के लिए रोज़री विन्ती कर सकें। जब उसने अपने दर्शन के बारे बतलाया तो पड़ोसियों ने उसका मजाक उड़ाया।

एक और दिन, एक 12 वर्षीय लड़का कोमोलादेवी के पास उसी पर्वत पर जाने के लिए कहने आया। जब वह वहां गई तो वह महिला फिर प्रकट हुई और उसे बताया कि वह येसु की माँ है और उसे प्रतिदिन रोजरी माला विन्ती करने के लिए कहा।

कोमोलादेवी ने अपना अनुभव फादर अल्फोंस बलियारसिंग को बतलाया जो उस समय कटक भुनेश्वर महाधर्मप्रांत के विकर जेनेरल थे। उन्होंने एक पल्ली समिति का गठन किया और जहाँ माता मरियम का दर्शन हुआ था वहाँ एक बरगद पेड़ के निकट ग्रोटो का निर्माण कराया।

उस विधवा ने बाद में बपतिस्मा ग्रहण किया। 27 मार्च 2020 को उसका निधन हो गया।