एआई : एक उपकरण है जो मानव की क्षमता का स्थान नहीं ले सकता
हमारे संपादकीय निदेशक ने विश्वास के सिद्धांत तथा संस्कृति एवं शिक्षा के लिए गठित परमधर्मपीठीय विभागों द्वारा कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर जारी नए दस्तावेज के मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला है।
सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात है इसका नाम। तथाकथित “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” उन मामलों में से एक है, जहाँ घटना की आमधारणा में नाम का बहुत महत्व है।
“अंतिक्वा एत नोता” के दस्तावेज को मंगलवार को विश्वास के सिद्धांत तथा संस्कृति एवं शिक्षा के लिए गठित विभाग द्वारा जारी किया गया। जो सबसे पहले हमें याद दिलाता है कि एआआई एक उपकरण है: यह कार्य करता है, लेकिन सोचता नहीं है। यह सोचने में सक्षम नहीं है। इसलिए इसे मानव की तरह सक्षम होने का श्रेय देना भ्रामक है, क्योंकि यह एक "मशीन" है जो तार्किक-गणितीय क्षेत्र तक ही सीमित रहती है। यानी, इसमें वास्तविकता की कोई अर्थपूर्ण समझ नहीं है, न ही कोई वास्तविक सहज और रचनात्मक क्षमता है। यह नैतिक विवेक या किसी विशेष उपयोगिता से परे , सत्य, अच्छा और सुंदर के प्रति खुलेपन को दोहराने में असमर्थ है। संक्षेप में, इसमें वह सब कुछ नहीं है जो वास्तव में और गहराई से मानव में है।
मानवीय बुद्धि, वास्तव में, व्यक्तिगत है, जबकि एक ही समय में सामाजिक, तर्कसंगत और भावात्मक है। यह व्यक्ति की अपूरणीय भौतिकता द्वारा मध्यस्थता वाले निरंतर संबंधों के माध्यम से जीवित रहती है। इसलिए एआई का उपयोग केवल एक उपकरण के रूप में किया जाना चाहिए जो मानव बुद्धि का पूरक हो, और किसी तरह से मानव व्यक्ति की विशेष समृद्धि का स्थान लेने का दावा न करे।
अनुसंधान की प्रगति और इसके संभावित अनुप्रयोगों के बावजूद, एआई एक "मशीन" बनी हुई है जिसकी कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी उन लोगों के पास है जो इसे डिजाइन और उपयोग करते हैं।
इस कारण से, नए दस्तावेज में इस बात पर जोर दिया गया है कि यह महत्वपूर्ण है कि जो लोग एआई पर आधारित निर्णय लेते हैं, उन्हें उनके द्वारा लिए गए विकल्पों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए, और निर्णय लेने की प्रक्रिया के हर चरण में इस उपकरण के उपयोग के लिए जवाबदेही संभव हो।
एआई अनुप्रयोगों में उपयोग किए जानेवाले उद्देश्यों और साधनों दोनों का मूल्यांकन यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाना चाहिए कि वे मानवीय गरिमा और आमहित का सम्मान और संवर्धन करते हैं। यह मूल्यांकन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग की वैधता को समझने के लिए एक मौलिक नैतिक मानदंड का गठन करता है।
टिप्पणी में सुझाव दिया गया है कि एआई के नैतिक मूल्यांकन के लिए एक अन्य मानदंड, व्यक्तियों और समुदायों के बीच रचनात्मक अंतर्संबंध को बढ़ावा देने और सामान्य भलाई के प्रति साझा जिम्मेदारी को बढ़ाने के लिए अपने परिवेश और पर्यावरण के साथ मनुष्यों के संबंधों के सकारात्मक पहलुओं को लागू करने की इसकी क्षमता से संबंधित है।
इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, केवल आंकड़ा और ज्ञान के संचय से आगे जाना जरूरी है, जैसा कि पोप फ्राँसिस ने सलाह दी है, "हृदय की सच्ची प्रज्ञा” प्राप्त करने का प्रयास करना है, ताकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग मानव को वास्तव में बेहतर बनने में मदद कर सके।
इस अर्थ में, टिप्पणी प्रौद्योगिकी के अधीनता के विरुद्ध चेतावनी देता है, हमें आमंत्रित करता है कि हम प्रौद्योगिकी का उपयोग मानव श्रम को उत्तरोत्तर बदलने के लिए न करें - जो हाशिए पर जाने और सामाजिक असमानता के नए रूप पैदा करेगा - बल्कि देखभाल में सुधार और सेवाओं एवं मानवीय संबंधों की गुणवत्ता को समृद्ध करने के लिए एक उपकरण के रूप में करें। यह जटिल तथ्यों को समझने में सहायता करता है और सत्य की खोज में एक मार्गदर्शक है। इस कारण से, एआई-ईंधन वाले मिथ्याकरण का मुकाबला करना न केवल क्षेत्र के विशेषज्ञों का काम है, बल्कि इसके लिए सभी के प्रयासों की आवश्यकता है।
हमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता को शोषण के रूप में या लोगों की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने से भी रोकना चाहिए; बहुतों की कीमत पर कुछ लोगों को लाभ पहुँचाने के लिए; या सामाजिक नियंत्रण के रूप में, लोगों को आंकड़े तक सीमित करने से रोकना चाहिए। और यह अस्वीकार्य है कि युद्ध के क्षेत्र में, किसी मशीन को मानव जीवन लेने का विकल्प सौंपा जाए। दुर्भाग्य से, हमने कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संचालित हथियारों के कारण होनेवाली तबाही देखी है, और यह तबाही कितनी बड़ी है, जैसा कि कई मौजूदा संघर्षों में दुखद रूप से प्रदर्शित होता है।