पोप लियोः करूणा मानवता का मर्म

पोप लियो 14वें ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर भले समारी के दृष्टांत पर अपना चिंतन प्रस्तुत करते हुए करूणा को मानवता का मर्म घोषित किया।
पोप लियो ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में भले समारी के दृष्टांत पर प्रकाश डालते हुए मानवता में विकसित होने की धर्मशिक्षा दी।
पोप ने कहा कि हम सुसमाचार के कुछ दृष्टांतों पर अपना चिंतन जारी रखते हैं जो हमारे लिए अपने विचारों में परिवर्तन लाने के अवसर होते और हमें आशा के लिए खुला रखते हैं। आशा की कमी कभी-कभी, हमारे लिए वास्तव में इसलिए होती कि हम कुछ बातों में कठोरता से अटक कर रह जाते और चीजों को देखने हेतु अपनी आंखों को बंद कर लेते हैं, दृष्टांत हमें दूसरी निगाहों से चीजों को देखने में मदद करते हैं।
आज मैं आप लोगों के संग एक विशेषज्ञ, ज्ञानी व्यक्ति, संहिता के ज्ञाता के बारे में बातें करना चाहूँगा, जिसे अपने विचारों को बदले की जरुरत है, क्योंकि वह अपने बारे में सोचता, अपने तक सीमित रहता और वहीं दूसरों की फिक्र नहीं करता है। वास्तव में, वह येसु से अनंत जीवन की चाह से संबंधित सवाल पूछता है। लेकिन उसके सवाल के पीछे शायद हम उसी दिखावे भरी मनसा को पाते हैं। वह केवल येसु से शब्द “पड़ोसी” के बारे में पूछता है जिसका शब्दिक अर्थ है, वह जो मेरी बगल में है।
दो सवाल
इसका उत्तर येसु उसे एक दृष्टांत के माध्यम देते हैं जो हमारे लिए मनफिराव का सवाल बनता है, जहाँ हम मुझे कौन प्रेम करता है से मैं किसे प्रेम करता हूँ की ओर ले चलता है। पहला हमारे लिए एक बचकना सवाल लगता है, जबकि दूसरा एक प्रौढ़ व्यक्ति का सवाल लगता है जो अपने जीवन के मर्म को समझा है। प्रथम सवाल को हम तब पूछते हैं जब हम कोने में बैठकर प्रतीक्षा कर रहे होते हैं, वहीं दूसरा हमें अपने जीवन के मार्ग में आगे की ओर बढ़ने में प्रेरित करता है।
जीवनः एक मार्ग
येसु जिस दृष्टांत की चर्चा करते हैं वास्तव में वह एक मार्ग के संदर्भ में है, और यह जीवन के मार्ग की भांति अपने में कठिन और अपने में अभेद्य है। उस मार्ग में एक व्यक्ति येरुसालेम, पर्वत में बसे नगर से येरिखो समुद्र के तल पर स्थापित शहर की ओर जा रहा था। यह दृश्य हमें पहले ही हमें संभावित घटना की झलक प्रस्तुत करता है- और ऐसा होता है कि उस व्यक्ति पर हमला किया जाता है, उसे पीटा, लूटा और अधमरा छोड़ दिया जाता है। यह वह अनुभव है जिसे हम अपने जीवन की उन परिस्थितियों, लोगों के साथ, कभी-कभी घटित होता पाते हैं जिन पर हम भरोसा करते हैं, वे हमसे सब कुछ छीन लेते हैं और हमें बीच राह में छोड़ देते हैं।
मानवता की मांग
यद्यपि, जीवन मिलनों से बना है, और इन मिलनों में, हम स्वयं को पाते हैं जो हम हैं। हम दूसरों के सामने अपने को पाते हैं, उनकी क्षणभंगुरता और कमजोरी का सामना करते और अपने में यह निर्णय लेते हैं कि हमें क्या करना चाहिए- उनकी मदद करनी चाहिए या यह बहाना करना कि कुछ भी गलत नहीं है। एक पुरोहित और याजक उसी मार्ग से होकर गुजरते हैं। वे येरुसालेम के मंदिर में सेवा देने वाले लोग होते हैं जो पवित्र स्थलों में रहते हैं। फिर भी, पूजा आराधना के क्रियाकलाप भी उन्हें स्वतः करूणावान होने हेतु अग्रसर नहीं करते हैं। वास्तव में, धार्मिकता से पहले हमारे लिए मानवता हेतु करूणावान होने का सवाल आता है। विश्वासी होने के पहले हम मानव होने के लिए बुलाये गये हैं।
हमारी प्राथमिकता क्या है
हम इस बात को देख सकते हैं कि येरूसालेम में एक लम्बे समय तक रहने के बाद वह पुरोहित और याजक शीघ्रता से अपने घर लौटने की धुन में रखते हैं। यह सचमुच में जल्दबाजी है, जो हमारे जीवन में व्याप्त है, जो बहुत बार करूणा की अनुभूति के मार्ग में रोड़ा बनती है। वे जो इस विचार को वहन करते कि उन्हें अपने जीवन यात्रा को महत्व देना है वे दूसरों के लिए रूकने की चाह नहीं रखते हैं।
पोप ने कहा कि यहाँ हम एक व्यक्ति को देखते हैं जो अपने में रुकने के योग्य होता है, वह एक समारी होता है, वह व्यक्ति अपने में एक तुच्छ समाज से जुड़ा है। उसके संदर्भ में हम दिशा से संबंधित कोई विशेष चर्चा नहीं पाते हैं, केवल इतना ही कि वह उस मार्ग से होकर गुजर रहा होता है। धार्मिकता उसके जेहन में प्रवेश नहीं करती है। वह समारी केवल इसलिए रुकता है कि क्योंकि वह एक मानव है जो एक दूसरे मानव को जरूरत की स्थिति में देखता है।