पोप : येसु हमें खोजने निकलते हैं

पोप लियो ने बुधवारीय आमदर्शन की धर्मशिक्षा में दाखबारी के मजदूरों पर चिंतन करते हुए ईश्वरीय उदारता पर प्रकाश डाला जो सदैव हमें खोजने हेतु बाहर निकलते हैं।

पोप लियो ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में मजदूरों का दाखबारी में कार्य हेतु भेजे जाने के दृष्टांत पर चिंतन किया।

प्रिय भाइयो एवं बहनो, पोप ने अपने कहा कि मैं पुनः येसु के और एक दृष्टांत की चर्चा करना चाहूँगा। इस दृश्य में भी हम एक वृतांत को पाते हैं जो हममें आशा पोषित करती है। वास्तव में, कई बार हमें ऐसा लगता है कि हम अपने जीवन का अर्थ नहीं पाते हैं, हम अपने में बेकार होने, असक्षम होने का अनुभव करते हैं ठीक उन मजदूरों की भांति जो चौराहे में खड़े किसी के द्वारा कार्य में लगाये जाने की प्रतीक्षा करते हैं। लेकिन समय बीत जाता है, जीवन आगे बढ़ता है और हम किसी के द्वारा स्वीकारे या प्रशंसा नहीं किये जाने का अनुभव करते हैं। शायद हम समय से नहीं पहुंचे होंगे, दूसरे हमसे पहले पहुंचे होंगे या जीवन की मुसीबतों ने हमें कहीं अटका दिया होगा।

चौराहे व्यापार के स्थल
चौराहे की उपमा हमारे जीवन के संदर्भ में भी उचित बैठती है, क्योंकि चौराहे को हम व्यापार स्थल के रुप में देखते हैं जहाँ दुर्भाग्यवश प्रेम और सम्मान भी खरीदे और बेचे जाते हैं, जिससे कुछ पाया जा सके। और जब हम अपने में स्वीकार, प्रशंसा नहीं किये जाने का अनुभव करते हैं, तो हम अपने को उनके हाथों में बेचने की जोखिम में पड़ जाते हैं जो हममें पहली बोली लगाते हैं। इसके बदले में ईश्वर हमें जीवन के मूल्य और इसे खोजने हेतु अपनी ओर से सहायता किये जाने की याद दिलाते हैं।

मजदूरों की प्रतीक्षा
आज के दृष्टांत जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं, हम मजदूरों को पाते हैं जो किसी के द्वारा कार्य में लगाये जाने की प्रतीक्षा में होते हैं। संत मत्ती के सुसमाचार के 20वें अध्याय में हम एक विचित्र व्यवहार व्यक्तित्व को पाते हैं जो हमें आश्चर्यचकित और चुनौती प्रदान करता है। वह एक दाखबारी का मालिक है जो व्यक्तिगत रुप में अपने मजदूरों की खोज हेतु बाहर निकलता है। वह उनके संग व्यक्तिगत रुप में संबंध स्थापित करना चाहता है।

दृष्टांत में आशा के संदेश
पोप लियो ने कहा कि जैसे मैं कहा रहा था, यह दृष्टांत हमें आशा प्रदान करता है क्योंकि हमारे लिए इस बात की चर्चा करता है कि मालिक कई बाहर जाते हुए उन लोगों की खोज करता है जो अपने जीवन को अर्थपूर्ण बनाने की प्रतीक्षा करते हैं। जमीन मालिक सुबह को तुरंत बाहर जाता और तब वह दिन के हर तीसरे घंटे में बाहर निकलता, मजदूरों की खोज करता और उन्हें अपनी दाखबारी में कार्य करने हेतु भेजता है। अपने निर्धारित समय के अनुसार, दोपहर के तीन बजे बाहर जाने के बाद, उसे मजदूरों की खोज हेतु पुनः बाहर जाने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि दिनी कार्य की समाप्ति छः बजे होती है।

स्वामी की चाह
थकानहीन यह स्वामी, जो हर कीमत पर सभी को जीवन का मूल्य प्रदान करना चाहता है पाँच बजे फिर बाहर निकलता है। चौराहों में रहने वाले मजदूरों ने शायद अपनी सारी आशा खो दी थी होगी। वे अपने में सोच रहे होंगे कि यह दिन व्यर्थ में चला गया। यद्यपि कोई उन लोगों पर अब भी विश्वास करता है। मजदूरों को दिन के आखरी पहर कार्य में लगाने से क्या फायदा है। लेकिन फिर भी, ऐसा लगता है कि हम अपने में केवल थोड़ा ही कर सकते हैं, यह सदैव हमारे लिए सार्थक होता है। हम सदैव अपने जीवन को अर्थ देखने के योग्य हो सकते हैं क्योंकि ईश्वर हमें प्रेम करते हैं।

ईश्वरः  जानते हैं कि उचित क्या है
पोप ने कहा कि और इस इस भूमि मालिक की वास्तविकता को हम दिन के अंतिम पहर, मजदूरी देने के समय देखते हैं। स्वामी कार्य में लगाये गये पहले पहर के मजदूरों को मेहनताना स्वरुप एक दीनार देने की बात पर सहमत होते हैं, जो मुख्य रुप से दैनिक मजदूरी की रकम थी। वे अन्य दूसरों से कहते हैं कि जो उचित होगा वे उन्हें प्रदान करेंगे। दृष्टांत की यह बात- क्या उचित है हमें उत्तेजित करती है। दाखबारी का स्वामी अर्थात ईश्वर इस बात का ध्यान रखते हैं कि हर व्यक्ति के जीवन निर्वाहण के लिए क्या उचित है। वे मजदूरों को व्यक्तिगत रुप में अपने पास बुलाते हैं, वे उनके मानवीय सम्मान से वाकिफ हैं, और इस आधार पर वे उन्हें मजदूरी के रूप में हर एक को एक दीनार देते हैं।