कथनी और करनी / चट्टान और बालू की नींव
मत्ती 7:21-29
"जो लोग मुझे ’प्रभु ! प्रभु ! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा।
उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, ’प्रभु ! क्या हमने आपका नाम ले कर भविष्यवाणी नहीं की? आपका नाम ले कर अपदूतों को नहीं निकाला? आपका नाम ले कर बहुत-से चमत्कार नहीं दिखाये?’
तब मैं उन्हें साफ-साफ बता दूँगा, ’मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियों! मुझ से दूर हटो।’
"जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया था।
पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी।
"जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया।
पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।"
जब ईसा का यह उपदेश समाप्त हुआ, तो लोग उनकी शिक्षा पर आश्चर्यचकित थे;
क्योंकि वे उनके शास्त्रियों की तरह नहीं बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।