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पोप फ्राँसिस : दक्षिणी सूडान में आशा एवं शांति विराजे
पोप फ्राँसिस ने ख्रीस्तयाग के उपरांत रविवार को देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। जहाँ उन्होंने दक्षिणी सूडान में उनके हार्दिक स्वागत के लिए अपना आभार प्रकट किया। उन्होंने आशा और शांति के लिए प्रार्थना की।
रविवार को पोप ने ख्रीस्तयाग के साथ दक्षिणी सूडान में अपनी प्रेरितिक यात्रा समाप्त की, जिसके अंत में उन्होंने उनके हार्दिक स्वागत और इस प्रेरितिक यात्रा को सफल बनाने के लिए सहयोग देनेवाले सभी लोगों के प्रति अपना आभार प्रकट किया।
उन्होंने दक्षिणी सूडान के लोगों को न केवल उनके स्नेह के लिए धन्यवाद दिया, बल्कि उनके विश्वास एवं धैर्य, उनके अच्छे कार्यों तथा निराश हुए बिना आगे बढ़ते हुए अपनी कठिनाईयों को ईश्वर को अर्पित करने की चाह के लिए धन्यवाद दिया।
देश में ख्रीस्तीय समुदायों के बीच आपसी एकता पर गौर करते हुए पोप ने कैंटरबरी के महाधर्माध्यक्ष की बातों को याद किया जिन्होंने संत जोस्फिन बकिता का उदाहरण देते हुए उन्हें एक महान नारी कहा था। जिन्होंने ईश्वर की कृपा से अपने दुःखों को सभी लोगों के लिए आशा में बदल दिया।
उन्होंने कहा, “आशा एक शब्द है, जिसको मैं एक उपहार के रूप में आप प्रत्येक के लिए छोड़ना चाहता हूँ, एक बीच के रूप में कि यह फल उत्पन्न करे।” उन्होंने देश की सभी महिलाओं को धन्यवाद देते एवं आशीष प्रदान करते हुए कहा, “विशेषकर, यहाँ की महिलाएँ, आशा की निशानी हैं।”
उसके बाद पोप ने एक-दूसरे शब्द पर जोर दिया जो इन दिनों गूँजा है एवं जिसको आना है। वह शब्द है शांति।
पोप ने कहा कि उन्होंने महाधर्माध्यक्ष जस्टिन वेलबे और डॉ. ईयन ग्रीनशील्डस के साथ ख्रीस्तीय एकता तीर्थयात्रा की, वे दक्षिणी सूडान के लोगों को साथ देते रहेंगे और स्थायी शांति की ओर आगे बढ़ने में हरसंभव मदद करते रहेंगे।
उन्होंने कहा, “मैं मेल-मिलाप एवं शांति के रास्ते को दूसरी महिला को समर्पित करना चाहता हूँ, महान किन्तु दीन, सबसे ऊपर उठायी गई किन्तु हम प्रत्येक के अति करीब : धन्य कुँवारी मरियम को।”
हम इस समय उनसे प्रार्थना करते हैं और दक्षिणी सूडान एवं समस्त अफ्रीका महादेश में हमारी शांति की कामना को उन्हें समर्पित करते हैं, जहाँ विश्वास में हमारे बहुत सारे भाई और बहनें, अत्याचार एवं खतरा महसूस करते हैं, जहाँ बड़ी संख्या में लोग संघर्ष, शोषण, और गरीबी से जूझ रहे हैं।
तब पोप ने यूक्रेन में जारी युद्ध की भी याद की और पूरे विश्व में शांति की कामना को माता मरियम को समर्पित किया।
दक्षिणी सूडान के लोगों को आश्वासन दिया कि जब वे रोम वापस लौट रहें तब वे उनके हृदय के अत्यन्त करीब हैं और अपने संदेश के अंत में प्रोत्साहन दिया कि वे आशा कभी न खोयें और शांति निर्माण करने के किसी अवसर को न जाने दें।” “आप लोगों के बीच आशा और शांति विराजे। दक्षिणी सूडान में आशा और शांति विराजे।”
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