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पोप फ्रांसिस: नम्रता धर्मसंघियों के लिए सच्चा मार्ग।
चीभीत्ता कथोलिका ने पोप फ्रांसिस के यूनान प्रेरितिक यात्रा के दौरान येसु संघियों से व्यक्तिगत मुलाकात की बातें प्रकाशित की। पोप फ्रांसिस ने यूनान की प्रेरितिक यात्रा के दौरान 04 दिसम्बर को अपने 7 येसु संघियों भाइयों से मुलाकात करते हुए उन्होंने अपने संबोधन में नम्रता के मार्ग में बने रहने का आह्वान किया। अपनी एक घटें की मुलाकात में संत पापा फ्रांसिस ने येसु संघी भाइयों से आग्रह किया कि वे अपने मन के विचार और सवाल खुले रुप में प्रकट करें।
एक आजीवन धर्मबंधु द्वारा पूछे गये सवाल की प्रंशसा करते हुए पोप फ्रांसिस ने आजीवन धर्मबंधुओं की स्थिति और उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा की। इस संदर्भ में उन्होंने अर्जेटीना के प्रांतीय अधिकारी स्वरुप अपने साथ घटित एक घटना को साझा करते हुए कहा कि उन्होंने एक निर्णय लेना था कि क्या वे गुरूकुल के एक विद्यार्थी को येसु संघी के रुप में स्वीकारते करते हुए पुरोहिताई प्रदान करेंगे।
पोप फ्रांसिस ने कहा कि वह अपने में एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व था लेकिन एक येसु संघी ने उन्हें इस बात का सुझाव दिया कि पुरोहिताई के पूर्व उसकी परख हेतु प्रेरिताई कार्य के लिए भेजा जाये।
“मैं अपने में यह सवाल करता हूँ कि क्यों एक आजीवन धर्मबंधु सही अर्थ में अपने जीवन को समझने हेतु सक्षम होता है। शायद इसलिए क्योंकि उनके हाथों के द्वारा किये गये कार्यों में प्रभावशलीता झलकती है।”
पोप फ्रांसिस ने कोरियाई मूल के येसु समाजी जो एथेंस में शरणार्थी बच्चों हेतु एक केंद्र की स्थापना की और अब केवल उसी संगठन में एक स्वयंसेवक के रूप में काम करते हैं, उनके सवाल का जवाब देते हुए नम्रता के गुण की प्रशंसा की।
“कोई प्रेरितिक कार्य हमारा नहीं बल्कि यह ईश्वर का है। यह रचनात्मक तटस्थता को व्यक्त करता है। एक व्यक्ति को पिता होने की जरूरत है जो बच्चे को बढ़ने देता हो।”
उन्होंने एक अन्य बुजुर्ग येसु संघी के सवाल, जो बुलाहट में आई गिरावट के कारण, यूनान में बहुत से प्रेरिताई कार्य के परित्याग के बारे पूछा, जिसके उत्तर में संत पापा ने कहा कि सन् 1958 में जब वे स्वयं नवशिष्यालय में थे, नवशिष्यों की संख्या 33,000 से अधिक थी, लेकिन अब यह लगभग आधी हो गई है।
पोप फ्रांसिस ने कहा, “मेरा विश्वास है कि ईश्वर हमें धार्मिक जीवन की शिक्षा दे रहे हैं। यह ईश्वर हैं जो हमारे लिए बुलाहट देते हैं। हम अपमान के रुप में इसके अर्थ को समझते हैं।”
उन्होंने संत इग्नासियुस की आध्यात्मिक साधना की चर्चा करते हुए “तृतीय स्तर की नम्रता” का जिक्र किया। “मैं दरिद्र येसु के संग समृद्धि की अपेक्षा दरिद्रता का चुनाव करना चाहता हूं सम्मान के बदले अपमान की कामना रखता हूँ।” उन्होंने कहा, “हमारे लिए केवल येसु संघी उर्वरता मायने रखती है, कहने का अर्थ “हमें अपमान से अभ्यस्त होने की आवश्यकता है”।
एक अन्य येसु समाजी द्वारा सालों पहले यूनान येसु संघी द्वारा आर्थोडक्स कलीसिया के साथ वार्ता का सपना जो आज प्रवासियों की मदद करने में बदल गया है, इसके उत्तर में संत पापा ने कहा “येसु समाजियों के रुप में हमें “मसीह के क्रूस के प्रति विश्वासी बने रहने की आवश्यकता है, बाकी ईश्वर जानते हैं”।
यद्यपि उन्होंने कहा कि काथलिकों और आर्थोडक्सो के बीच वार्ता सही दिशा में चल रही है जो यह प्रकट करती है, “आपने प्रार्थना के माध्यम अपनी आशाओं और कामों के अच्छे बीज बोये हैं।”
शरणार्थियों के संग कार्यरत बेल्जियम जन्मे येसु समाजी जिसे एक बार संदिग्ध मानव तस्कर के रूप में गिरफ्तार किया गया था, संत पापा ने कहा कि इस तरह के प्रेरितिक कार्य में “काफी अपमान” सहना पड़ता है, फिर भी यह जरुरी है कि हम अपनी बुलाहट में बढ़ते हुए “मुस्कान के साथ” बढ़ापे और थकान को प्राप्त करते हैं।
“जब कोई इस मुस्कुराते हुए बुढ़ापे को देखता है- जिसमें थकान है लेकिन उनमें कड़वा नहीं है - तो आप आशा के एक गीत बनते हैं”।
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