फादर विन्सेंट ने इस प्रकार परोपकार के हज़ारों कार्य किये। वे कहते थे- "मेरा जीवन ईश्वर और निर्धनों के लिए है।" उन्होंने अपने जीवन में प्रभु येसु की दीनता को पूर्णस्वरूप से अपना लिया था। जो धार्मिकता उन्होंने सिखाई, वह ख्रीस्त की सुसमाचारी शिक्षा के अनुसार कार्य करने, विशेष रूप से पडोसी प्रेम तथा गरीबों, दीन-दुखियों की की सहायता आधारित थी। वे बड़े ही कुशल कार्यकर्ता थे और उनका जीवन सदैव दूसरों के लिए प्रेरणात्मक था। वे दिनों को सुसमाचार सुनाते थे और अनेकों सेवा कार्यों को करते हुए सदैव विनम्र बने रहते थे।
इस प्रकार निरंतर अथक परिश्रम करते-करते उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और अंत में फ़्रांस की राजधानी पेरिस में 26 सितम्बर 1660 में विन्सेंट का देहांत हुआ। सन 1737 में उन्हें संत घोषित किया गया। संत विन्सेंट के आदर्श पर चलना और उनको जीवन में कार्यान्वित करना वर्तमान युग की मांग है। गरीबों, दुखियों व अनाथों की सेवा में कार्य करने वाले समस्त संस्थाओं के वे रक्षक संत है।
माता कलीसिया 27 सितम्बर को उनका पर्व मनाती हैं।

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