स्त्रियों के प्रति प्रभु का सम्मान और पापियों के प्रति उनकी दया और क्षमा पर लूकस ने विशेष प्रकाश डाला है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया है कि ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। वह अपनी दया और प्रेम केवल यहूदियों पर ही नहीं, किन्तु उन सब लोगों पर बिना किसी शर्त के बरसाता है जो उसके पुत्र प्रभु येसु में विश्वास करते हैं। चूँकि लूकस उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति थे, उन्होंने प्रवाहमय भाषा एवं आकर्षक शैली में अपनी रचना की। उन्होंने ही प्रेरित-चरित्र की रचना की जो नए विधान का सबसे सुन्दर पुस्तक है जिसमे उन्होंने बड़ी सरल शैली में प्रभु का स्वर्गारोहण, कलीसिया का प्रारम्भ एवं क्रमिक विकास का मार्मिक चित्रण किया है।
रोम में संत पौलुस के दो वर्षों के कारावास में लूकस उनके साथ थे। पौलुस उन्हें अपना वैद्य मित्र कहकर पुकारते थे। पौलुस की तीसरी मिशनरी यात्रा में लूकस भी उनके साथ हो लिए थे जिनकी पुष्टि पौलुस के पत्र से होती है। तिमथी के नाम पत्र में वे लिखते है कि केवल लूकस मेरे साथ हैं। संत पौलुस की शहादत के कुछ वर्षों पश्चात् अखैया में लूकस ने शहीद बनकर प्रभु के लिए अपने प्राण अर्पित किये।
लूकस बहुत अच्छे चित्रकार भी थे। उन्होंने माता मरियम के कई सुन्दर चित्र बनाये थे जिनमे से कुछ संत थॉमस अपने साथ लाये थे। उन्हें केरल किन्ही तीर्थ स्थानों के गिरजाघरों में अब भी देखा जा सकता है।
माता कलीसिया संत लूकस का पर्व 18 अक्टूबर को मनाती है।

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