संत के कुछ प्रमुख परामर्श ये थे- "अन्याय को भी धैर्य से सहना सच्चे ख्रीस्तीय का लक्षण है। हमारे छोटे से छोटे काम को भी यदि प्रभुवर ईसा मसीह से संयुक्त होकर किया जाए तो वह ईश्वर की दृष्टि में अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है। हमें प्रभुवर येसु का हर क्षण अपने हृदय मंदिर में बसाये रखना चाहिए। हम अपने दैनिक जीवन में दुःख कष्टों को प्रभु के प्रेम के खातिर धैयपूर्वक सहे और क्रूस से प्रेम करना सीखे। इस प्रकार हु प्रभु येसु के सच्चे शिष्य बनें।"
प्रभु येसु में अपने विश्वास के कारण मृत्यु का स्वागत करने के लिए इग्नासियुस बहुत उत्साहपूर्वक तैयार थे; और रोम के अखाड़े में प्रवेश करते ही उन्होंने हर्षपूर्वक कह- "मैं प्रभु के गेहूं का दाना हूँ और मुझे शेरों के दांतों तले पिसा जाना चाहिए।" सिपाहियों ने उन्हें अखाड़े में खड़ा कर दिया। तब दो खूंखार शेरों को उन पर छोड़ दिया। कई दिनों से भूखे शेर उनपर टूट पड़े और उनके शरीर को चीर-फाड़ कर कुछ ही क्षणों में खा गए। रक्त की तीव्र धारा बह निकली और केवल उनकी हड्डियाँ बची रही। इस प्रकार संत धर्माध्यक्ष इग्नासियुस की प्रार्थना पूर्ण हो गयी; और उनकी निर्मल आत्मा सीधे अपने प्रभु के चरणों में उनके साथ महिमान्वित होकर अनंत आनंद मनाने पहुँच गयी। अन्ताखिया के भक्त विश्वासीगण उनके पवित्र अवशेष एकत्र कर अन्ताखिया ले गए और वहाँ बड़े सम्मानपूर्वक उन्हें कब्र में रखा गया। तब से वहाँ प्रति वर्ष 17 अक्टूबर को माता कलीसिया संत इग्नासियुस का पर्व मनाती है।

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