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विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त धर्मसंघ की पूर्णकालिक सभा को सम्बोधन
पोप फ्रांसिस ने शुक्रवार को वाटिकन में, विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त सम्बन्धी परमधर्मपीठीय धर्मसंघ की पूर्णकालिक सभा में भाग लेनेवाले सदस्यों को सम्बोधित कर, विश्वास और नैतिकता पर काथलिक कलीसिया के धर्मसिद्धांत की अखंडता को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा करने हेतु, धर्मसंघ की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा प्रतिष्ठा, विवेक और विश्वास के महत्व पर प्रकाश डाला।
पोप ने कहा कि जैसा कि मैंने अपने विश्व पत्र फ्रातेल्ली तूत्ती में लिखा है, यह समय जो हमें वरदान स्वरूप मिला है, इसमें हम प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को मान्यता देकर सबके भीतर भाईचारे की विश्वव्यापी आकाँक्षा को पुनः जीवित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि भाईचारा ही वह मुकाम है जिसे सृष्टिकर्त्ता ईश्वर ने मानव जाति की यात्रा के लिये तय किया है तो इसका प्रमुख मार्ग है, प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को मान्यता प्रदान करना।
पोप ने कहा कि इतने सारे सामाजिक, राजनीतिक और यहां तक कि स्वास्थ्य तनावों से चिह्नित हमारे युग में, हालांकि, दूसरे को एक अजनबी या दुश्मन के रूप में देखने का प्रलोभन बढ़ रहा है, और व्यक्तियों को वास्तविक सम्मान से वंचित कर रहा है, हम सबका आह्वान किया जाता है कि हम प्रत्येक की प्रतिष्ठा को मान्यता दें। उन्होंने कहा कि प्रत्येक मनुष्य की गरिमा का एक आंतरिक चरित्र होता है, जो व्यक्ति गर्भाधान के क्षण से लेकर उसकी प्राकृतिक मृत्यु तक मान्य होता है। सन्त पापा ने कहा कि पृथ्वी के सभी लोगों के बीच भाईचारे और सामाजिक मैत्री को महसूस करने के लिए यह आवश्यक शर्त है कि प्रत्येक की प्रतिष्ठा को मान्यता दी जाये।
विवेक के गुण पर चिन्तन करते हुए सन्त पापा ने कहा आज पहले से कहीं अधिक इस बात की आवश्यकता है कि विश्वासी विवेक की कला सीखें। द्रुत गति से होते परिवर्तन के युग में, एक ओर जहां विश्वासी स्वयं को नए और जटिल मुद्दों का सामना करते हुए पाते हैं, वहीं दूसरी ओर, आध्यात्मिकता की आवश्यकता बढ़ जाती है जो हमेशा सुसमाचार में अपने संदर्भ के बिंदु को नहीं पाती और जिसके लिये ईश्वर से ठोस चिन्ह की आवश्यकता रहा करती है। इस सन्दर्भ में सन्त पापा ने कहा कि दुराचार से पीड़ित लोगों को सुरक्षा, पुनर्वास एवं सान्तवना देने के लिये परमधर्मपीठीय विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त सम्बन्धी धर्मसंघ जो प्रयास कर रहा है, वे अर्थगर्भित हैं।
पोप ने कहा कि इसी प्रकार विवाह विच्छेद आदि के प्रश्नों पर भी विवेक की नितान्त आवश्यकता रहा करती है जिसके लिये सतत प्रार्थना एवं निष्कपट हृदय की आवश्यकता है।
विश्वास शब्द पर चिन्तन प्रस्तुत कर पोप फ्राँसिस ने कहा कि विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त सम्बन्धी परमधर्मपीठीय धर्मसंघ का कार्य केवल विश्वास की रक्षा करना ही नहीं है अपितु विश्वास को प्रोत्साहन देना भी है। उन्होंने कहा कि विश्वास के बिना, दुनिया में विश्वासियों की उपस्थिति एक मानवीय एवं लोकोपकारी एजेंसी मात्र बन कर रह जायेगी, इसलिये विश्वास को हर बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति के कार्य एवं जीवन का प्राण होना चाहिये। इसके लिये सन्त पापा ने पवित्रआत्मा से सतत प्रार्थना का परामर्श दिया और कहा कि प्रार्थना एवं बाईबिल पाठ ही ख्रीस्तीयों को उनके विश्वास में सुदृढ़ कर सकता तथा उन्हें विश्व को एक बेहतर स्थल बनाने हेतु योगदान देने में मदद प्रदान कर सकता है।
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