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पूजन धर्मविधि अध्ययन कलीसियाई एकता को बढ़ाती है, पोप
पोप फ्राँसिस संत अन्सेल्मो परमधर्मपीठीय संस्थान के सदस्यों को संबोधित किया और अधिक से अधिक कलीसियाई एकता की ओर ले जाने वाली पूजा पद्धति के अध्ययन के महत्व पर बल दिया।
पोप फ्राँसिस ने शनिवार को वाटिकन में रोम स्थित पोंटिफिकल लिटर्जिकल इंस्टीट्यूट संत अन्सेलमो के छात्रों, पूर्व छात्रों, प्रोफेसरों, इंस्टीट्यूट के डीन और फादर रेक्टर से मुलाकात की जो संस्थान की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। पोप फ्राँसिस ने परिचय भाषण के लिए अन्सेलमो मठ के मठाधीस को धन्यवाद दिया साथ ही वहाँ उपस्थित सभी विद्यार्थियों प्रोफेसरों को बधाई दी।
पोप ने कहा कि दूसरी वाटिकन महासभा में लिटर्जिकल कॉन्स्टिट्यूशन साक्रोसांटुम कॉन्सिलियुम के अनुसार कलीसिया के धार्मिक जीवन को अधिक तीव्रता से जीने और धर्मविधि में सक्रिय रुप से भाग लेने की बढ़ती आवश्यकता की प्रतिक्रिया के रूप में उनकी संस्था की स्थापना हुई। अब उनके संस्थान का पूजन धर्मविधि अध्ययन के प्रति समर्पण सर्वविदित है। इस संस्थान द्वारा प्रशिक्षित विशेषज्ञ अलग-अलग सांस्कृतिक संदर्भों में कई धर्मप्रांतों की कलीसियाओं के धार्मिक जीवन को बढ़ावा दे रहे हैं।
पोप फ्राँसिस ने कलीसिया की धर्मविधि के नवीनीकरण के लिए तीन आयामों का उल्लेख किया। पहलाः कलीसिया के पूजन धर्मविधि में सक्रिय और फलदायी भागीदारी; दूसराः यूखारीस्तीय समारोह और अन्य संस्कारों द्वारा अनुप्राणित कलीसियाई सहभागिता, तीसराः सुसमाचार प्रचार के मिशन के लिए सभी बपतिस्मा प्राप्त ख्रीस्तियों को प्रशिक्षित करना जो कि पूजन धर्मविधि जीवन से शुरू होता है। पोंटिफिकल लिटर्जिकल इंस्टीट्यूट इस ट्रिपल आयामों की सेवा में है।
पोप ने कहा कि सबसे पहले पूजन धर्मविधि में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना। पूजन धर्मविधि के गहन और वैज्ञानिक अध्ययन से इस मौलिक आयाम को प्रोत्साहित करना चाहिए। यहां कुंजी लोगों को धर्मविधि की भावना में आने के लिए शिक्षित करना है और यह कैसे करना है, यह जानने के लिए इस भावना से ग्रसित होना आवश्यक है। हमेशा नए विस्मय के साथ पूजा-पाठ की भावना से ओत-प्रोत होना, इसके रहस्य को महसूस करना चाहिए। पोप ने कहा कि धर्म विधि या पूजा पाठ कोई पेशा नहीं है: धर्मविधि समारोह मनाया जाता है और कोई सक्रिय रूप से केवल उस हद तक भाग लेता है जब तक वह उसकी आत्मा में प्रवेश करता है। यह मसीह का रहस्य है, जिसने एक बार और सभी के लिए पवित्र बलिदान और पौरोहित्य को पूरा किया। पोप ने कहा कि वे आत्मा और सच्चाई से धर्मविधि को सम्पन्न करें। उनके संस्थान में इसे आत्मसात किया जाना चाहिए। केवल इस तरह से कलीसिया में भागीदारी हर समय और हर परिस्थिति में सुसमाचार के रूप में जीने के लिए प्रेरित करता है।
पोप ने कहा कि कलीसिया में संस्कारों और धर्मविधियों में सहभागी होकर मसीह के साथ और एक दूसरे के साथ आपसी संबंध को मजबूत करते हैं। पूजा-पाठ में ईश्वर की महिमा करना, पड़ोसी प्रेम में, रोजमर्रा की परिस्थितियों में भाइयों के रूप में रहने की प्रतिबद्धता, उस समुदाय की ताकत पुष्टि करता है। यही सच्ची पवित्रता का मार्ग है। इसलिए, ईश्वर के लोगों का प्रशिक्षण पूरी तरह से कलीसियाई धार्मिक जीवन जीने के लिए एक मौलिक कार्य है।
पोप ने तीसरे पहलू पर जोर देते हुए कहा कि हर धार्मिक समारोह हमेशा मिशन के साथ समाप्त होता है। हम जो समारोह मनाते हैं, वह हमें दूसरों से मिलने, अपने आस-पास की दुनिया से मिलने, कई लोगों की खुशियों और जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रेरित करता है। विशेष रुप से पवित्र मिस्सा समारोह हमें दूसरों के प्रति खुला रहने और दूसरों की मदद हेतु दान देने के लिए प्रोत्साहित करता है और यह आयाम हमें विश्वव्यापी भावना में संवाद करने और मुलाकात की संस्कृति का स्वागत करने के लिए भी खोलता है।
पोप ने इस बात पर जोर दिया कि पूजन धर्मविधि और इसके अध्ययन को अधिक से अधिक कलीसियाई एकता की ओर ले जाना चाहिए। ईश्वर की आराधना करना और साथ ही पूजा-पाठ को उन मुद्दों के लिए युद्ध का मैदान बनाना संभव नहीं है जो जरूरी नहीं हैं। सुसमाचार और कलीसिया की परंपरा हमें अनिवार्य रूप से एकजुट होने और आत्मा के सामंजस्य में वैध मतभेदों को साझा करने के लिए बुलाती है। इसलिए द्वितीय वाटिकन महासभा ईश्वर के वचन और यूखारिस्त की तालिका को बहुतायत से तैयार करना चाहती थी, ताकि उसके लोगों के बीच में ईश्वर की उपस्थिति संभव हो सके। इस प्रकार कलीसिया, पूजन धर्मविधि प्रार्थनाओं के माध्यम से, हर समय के पुरुषों और महिलाओं के बीच और सृष्टि के बीच में भी, उनकी पवित्र उपस्थिति में मसीह के कार्य को बढ़ाता है। इस रहस्य के प्रति वफादार रहते हुए पूजन धर्मविधि का अध्ययन किया जाना चाहिए।
पोप फ्राँसिस अपने प्रवचन को समाप्त करते हुए कहा कि "हमारी दुनिया और वर्तमान क्षण की चुनौतियाँ बहुत उलझी हुई हैं" और इस कारण से, "कलीसिया को हमेशा की तरह आज भी पूजन धर्मविधि के अनुसार जीने की आवश्यकता है"। अंत में, पोप ने संस्थान के सदस्यों को कलीसिया की सेवा के लिए धन्यवाद दिया और उन्हें "आत्मा के आनंद में इसे आगे बढ़ाने" के लिए प्रोत्साहित किया।
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