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पास्का उर्बी एत् ओर्बी में पोप : येसु की शांति में हमारी जीत
पोप फ्राँसिस ने वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर के झरोखे से पास्का पर्व के अवसर पर ऊर्बी एत् ओर्बी, रोम और विश्व के नाम अपना शांति संदेश दिया।
क्रूसित येसु मृतकों में से जी उठे हैं। वे उनके बीच उपस्थिति होते जो उनके लिए शोकित है, जो भय और दुःख के कारण दरवाजों के अंदर बंद हैं। वे उनके बीच आते और कहते हैं, “तुम्हे शांति मिले” (यो. 20.19)। वे उन्हें अपने हाथों और पैरों, अपनी बगल के घाव दिखलाते हैं। वे प्रेत-आत्मा नहीं बल्कि वही येसु ख्रीस्त हैं जो क्रूस पर मर गये और कब्र में दफनाये गये थे। अविश्वासी शिष्यों की आंखों के सम्मुख वे पुनः कहते हैं, “तुम्हें शांति मिले”।
हमारी आंखें भी विस्मित हैं क्योंकि इस पास्का में हम युद्ध को देखते हैं। हमने बहुत अधिक खून खराबे, बहुत अधिक हिंसा को देखा है। हमारे हृदय भी भय और दुःख से भरे हैं, जैसे कि हम अपने बहुत से भाई-बहनों को बम धमाकों से बचे रहने हेतु दुबका हुआ पाते हैं। हमें यह विश्वास करने में कठिन लगता है कि येसु सचमुच में मृत्यु पर विजय होते हुए जी उठे हैं। क्या यह एक भ्रम हो सकता हैॽ क्या यह हमारे लिए कल्पना का फल हो सकता हैॽ
पोप फ्रांसिस ने कहा कि नहीं, यह एक भ्रम नहीं है। आज हम पहले से अधिक पूर्व के प्रिय ख्रीस्तियों में इस बात को गूंजित होता पाते हैं कि “येसु ख्रीस्त जी उठे हैं। वे सचमुच जी उठे हैं।” आज हमें उनकी, पहले से अधिक जरुरत है, लेकिन चालीसा के अंत में ऐसा प्रतीत होता है कि मानों यह अंतहीन हो। महामारी के दो सालों ने हमारे कंधों पर बड़ा भार छोड़ दिया है। यह हाथ में हाथ मिलकर सुरंग से बाहर निकलने का समय था जहाँ हमने अपनी ओर से पूरे तन-मन धन से कोशिश की... लेकिन इसके बदले हमने अपने में व्याप्त काईन के व्यवहार को प्रकट किया है, जिसने हाबिल को अपने भाई कि तरह नहीं, लेकिन एक विरोधी की तरह देखा और इस बात पर विचार किया कि उसे किस तरह मार डाला जाये। हमें जीवित क्रूसित येसु की जरुरत है जिससे हम प्रेम की जीत पर विश्वास कर सकें, मेल-मिलाप पर आशा बनाये रख सकें। हमें पहले से अधिक आज उनकी जरूरत है जो हमारे बीच खड़े होते हुए हमें यह कहें, “तुम्हें शांति मिले”।
पोप ने कहा कि केवल वे ही ऐसा कर सकते हैं। केवल उनके पास वह अधिकार है जिसके द्वारा वे हमारे लिए शांति की घोषणा करते हैं। सिर्फ येसु ख्रीस्त, क्योंकि वे हमारे घावों को अपने ऊपर लेते हैं। असल में वे हमारे घाव हैं, जिनके दो कारण हैं। वे हमारे हैं क्योंकि हमने अपने पापों के कारण उन्हें दिया है। वहीं अपनी हृदय की कठोरता के कारण, अपने भाई के प्रति घृणा के कारण उन घाव को हमने उन्हें दिया है। वे हमारे घाव हैं क्योंकि हमारे लिए उन्होंने उन्हें अपने ऊपर ले लिया, अपने महिमा शरीर से वे उन्हें अलग नहीं करना चाहते। वे उन्हें अपने में रखना चाहते हैं, अपने ऊपर सदैव ढ़ोते हैं। वे हमारे लिए उनके प्रेम की अमिट निशानी हैं, एक अनंत मध्यस्थता ताकि स्वर्गीय पिता उन्हें देख सकें और हम पर और पूरी दुनिया पर दया करें। जी उठे येसु के शरीर में घाव उस संघर्ष के संकेत हैं जिसे उन्होंने हमारे लिए लड़ा और जीता, उन्हें प्रेम के हथियारों के साथ जीता, ताकि हम शांति प्राप्त कर सकें, शांति में जीवन यापन कर सकें।
उन महिमामय घावों पर चिंतन करते हुए, हमारी अविश्वासनीय आखें खुलती हैं, हमारे कठोर हृदय कोमल होते हैं और हम पास्का के संदेश का स्वागत करते हैं, “तुम्हें शांति मिले”। प्रिय भाइयो एवं बहनों हम अपने परिवार में, अपने हृदय में, अपने देश में शांति को प्रवेश करने दें।
पोप ने कहा कि हम युद्ध के कारण विध्वंस यूक्रेन में शांति की कामना करते हैं, जो विचारहीन विनाशकारी युद्ध में घसीटा गया और हिंसा का शिकार हुआ। इस दुःख और मृत्यु की भयंकर रात में, जितनी जल्दी हो सकें हम आशा की एक नई सुबह ही कामना करते हैं। हम शांति के लिए एक निर्णय लें। लोगों के दर्द में हम अपना सीना चौड़ा करना बंद करें। कृपया, हम युद्ध के अभ्यस्त न हों। हम अपने को शांति के लिए समर्पित करें और अपने घरों के छज्जों और गलियों में, सभी मिलकर एक साथ शांति की पुकार करें। देश जो जिम्मेदार हैं और नेतागण लोगों से आनेवाली शांति पुकार को सुनें। हम सत्तर सालों पहले विचलित करने वाले वैज्ञानिकों के सवाल को सुनें,“क्या हम मानव जाति का विनाश करेंगे या मानवता युद्ध का परित्याग करेगाॽ” (रसेल-आइंस्टीन मेनिफेस्टो, 9 जुलाई, 1955)।
पोप ने कहा कि मैं अपने हृदय में असंख्य यूक्रेन युद्ध के शिकार लोगों, लाखों प्रवासियों और अंतरिक रुप में विस्थापितों को वहन करता हूँ, जो परिवारों से बिखर गये हैं, बुजुर्ग अपने में छोड़ दिये गये हैं, जीवन टूट चुका है और शहरें जो विनाश हो चुके हैं। मेरी आंखों में उन अनाथ बच्चों के चेहरे उभर कर आते हैं जो युद्ध के कारण भागने को विवश हैं। उन्हें देखते हुए हम कुछ नहीं कर सकते सिवाय उनकी दर्द भरी कराह को सुनने के, उनके साथ अन्य बहुत से बच्चें जो विश्व भर में कई समस्याओं के शिकार हैं। वे जो भूखों या देख-रेख के अभाव में मर रहे हैं, वे जो शोषण और हिंसा के शिकार हैं, वे,जिनके जीवन के अधिकार को लूट लिया गया है।
युद्ध के दर्द में भी हम बहुत सारे साहस भरे संकेतों को देखते हैं, जैसे कि कई परिवारों और समुदायों के खुले दरवाजे, जो पूरे यूरोप के प्रवासियों और शरणार्थियों का स्वागत करते हैं। करूणा के ये असंख्य कार्य हमारे समाजों के लिए एक आशीर्वाद बने, जो स्वार्थ और व्यक्तिवाद से हटकर सभी का स्वागत करते हुए मदद हेतु तैयार हैं।
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