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ख्रीस्तीय स्कूल में धर्मान्तरण आरोप का धर्माध्यक्ष ने किया खण्डन
कर्नाटक में बैंगलोर के काथलिक महाधर्माध्यक्ष पीटर मचादो ने क्लारेन्स काथलिक हाई स्कूल पर लगाये गये बलात धर्मान्तरण के आरोपों से इनकार करते हुए कहा है कि "ये आरोप झूठे और भ्रामक हैं।"
11 वीं कक्षा के छात्रों के प्रवेश पत्र में यह पाये जाने के बाद कि छात्रों को "अपने स्वयं के नैतिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए सुबह की धर्मशास्त्र सभा में भाग लेने और बाइबिल और भजन पुस्तक ले जाने पर कोई आपत्ति नहीं होगी", जनजाग्रति नामक दक्षिण पंथी हिन्दू संगठन ने क्लारेन्स स्कूल पर धर्मान्तरण का आरोप लगाया था।
कर्नाटक राज्य सरकार ने स्कूल के खिलाफ शिकायत पर संज्ञान लिया और 26 अप्रैल को प्रबंधन को नोटिस देकर आरोपों पर जवाब मांगा।
26 अप्रैल को ही महाधर्माध्यक्ष पीटर मचादो ने एक वकतव्य जारी कर स्पष्ट किया कि “स्कूल 100 साल से अधिक पुराना है और इस स्कूल के खिलाफ कभी भी धर्मांतरण की कोई शिकायत नहीं आई है। स्कूल इस तथ्य को उचित ठहराता है कि बाईबल के उदाहरणों के आधार पर नैतिक शिक्षा को बलात धार्मिक शिक्षा नहीं माना जा सकता है। अन्य धार्मिक संप्रदायों द्वारा संचालित संस्थाएं भी अपने धर्मग्रन्थों के आधार पर धार्मिक शिक्षा देती हैं। केवल ख्रीस्तीय संस्थानों को ही निशाना बनाना बेहद अनुचित है। उन्होंने कहा कि लोगों की भलाई के लिये जो कुछ भी किया जाता है उसे बलात धर्मांतरण के रूप में चिह्नित किया जाता है, जो कि बड़े दुख का विषय है।"
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि "ऐसी प्रथा पहले थी और पिछले साल से किसी भी बच्चे को स्कूल में बाइबल लाने या ज़बरदस्ती पढ़ने के लिए कहने की आवश्यकता नहीं है।" उन्होंने कहा, "एक ईसाई अल्पसंख्यक स्कूल होने के नाते, स्कूल के घंटों के बाहर ख्रीस्तीय छात्रों के लिए बाईबल धर्मग्रन्थ या धर्मशिक्षा कक्षाएं संचालित करना प्रबंधन के अधिकारों के अन्तर्गत आता है।"
महाधर्माध्यक्ष मचादो ने सरकार के दोहरे मापदण्ड पर सवाल उठाते हुए कहा कि हिन्दू शिक्षण संस्थानों में भगवत गीता तथा अन्य हिन्दू धर्मग्रन्थों को पाठ्यक्रम में रखा जाता है जिसपर सरकार को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं है तो उसे अल्पसंख्यक स्कूलों में दी जानेवाली बाईबिल पर आधारित शिक्षा पर भी आपत्ति नहीं होनी चाहिये।
महाधर्माध्यक्ष ने कहा, “हमने सुना है कि सरकार की अगले साल से, भगवद गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों से मूल्यों पर पाठ शुरू करने की योजना है। यदि बच्चों से भगवद गीता या अन्य धार्मिक पुस्तकों को खरीदने का अनुरोध किया जाता है, तो क्या इसे उन्हें प्रभावित करने या इन विशेष धर्मों में परिवर्तित होने के लिए प्रेरित करने के रूप में माना जा सकता है? हरगिज नहीं!"
उन्होंने कहा, "नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए अल्पसंख्यक स्कूलों में धर्मग्रंथों का उपयोग छात्रों को उनके धर्म के प्रति ज़बरदस्ती आकर्षित करने के रूप में नहीं माना जा सकता है। माता-पिता की स्कूल चुनने की स्वतंत्रता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि समाज में नैतिक शुद्धता और अच्छे व्यवहार की कुछ अवधारणाओं को व्यक्त करने के लिए प्रबंधन का विशेषाधिकार। इसे बलात धर्मांतरण के रूप में व्याख्यायित नहीं किया जा सकता है।"
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