पोप फ्राँसिस : पवित्रतम हृदय की भक्ति के अभ्यास को पुनः जागृत करें

येसु के पवित्रतम हृदय के दिव्यदर्शन और उसकी भक्ति की जयन्ती के अवसर पर रोम में आयोजित सम्मेलन के प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए पोप फ्राँसिस ने आह्वान किया है कि येसु के पवित्र हृदय की भक्ति को पुनः जागृत किया जाए।

पोप फ्राँसिस ने शनिवार को “अपूरणीय की क्षतिपूर्ति” विषय पर आयोजित सम्मेलन के 130 प्रतिभागियों से वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में मुलाकात की। प्रतिभागियों ने संत मरिया मार्ग्रेट को येसु के दिव्यदर्शन की 350वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में पोप फ्राँसिस से मुलाकात की।

अपने सम्बोधन में पोप ने क्षतिपूर्ति शब्द पर चिंतन करते हुए कहा कि इस शब्द को हम बाईबिल में अक्सर पाते हैं। “पुराने व्यवस्थान में यह बुराई के लिए मुआवज़े का एक सामाजिक आयाम था। मूसा के नियम अनुसार इसका अर्थ था चुरायी गई वस्तु को वापस करना। (निर्ग. 22,1-15, लेवी 6,1-7) यह “सामाजिक जीवन की सुरक्षा” में न्याय स्थापित करना था।

हालांकि पोप ने कहा कि क्षतिपूर्ति नये व्यवस्थान में यह ख्रीस्त के द्वारा लाए गए मुक्ति के ढांचे के भीतर एक आध्यात्मिक प्रक्रिया का रूप लेता है। क्रूस के बलिदान में क्षतिपूर्ति पूरी तरह से प्रकट होती है। इसमें  नवीनता यह है कि यह पापी के प्रति ईश्वर की दया को प्रकट करती है। इसलिए प्रायश्चित न केवल मनुष्यों के आपस में मेल-मिलाप में योगदान देता है, बल्कि ईश्वर के साथ मेल-मिलाप में भी योगदान देता है, क्योंकि किसी पड़ोसी के विरुद्ध की गई बुराई, ईश्वर के प्रति भी एक अपराध है।”

प्रवक्ता ग्रंथ का हवाला देते हुए जिसमें लेखक कहते हैं “उनके आंसू चेहरे पर झरते हैं और उनकी आह अत्याचारियों पर अभियोग लगाती है” संत पापा ने कहा कि अब भी कितने आँसू ईश्वर के चेहरे पर झर रहे हैं जब दुनिया में लोगों की प्रतिष्ठा के खिलाफ दुर्व्यवहार हो रहे हैं।

पोप ने सम्मेलन के प्रतिभागियों को उनके सम्मेलन की विषयवस्तु की ओर आकृष्ट करते हुए कहा कि इसमें दो विपरीत अभिव्यक्तियाँ हैं : अपूरणीय की क्षतिपूर्ति।

उन्होंने कहा इस तरह वे हमें यह आशा करने के लिए आमंत्रित करते हैं कि हर घाव ठीक हो सकता है, भले ही वह गहरा हो। पूरी तरह ठीक हो पाना कभी-कभी असंभव प्रतीत होता है जब यह धन की बात हो या प्रियजन के हमेशा के लिए खो जाने से संबंधित हो, किन्तु हृदय की शांति वापस पाने के लिए मेल-मिलाप की प्रक्रिया को अपनाना आवश्यक है। अपनी गलतियों को स्वीकार करना एवं माफी मांगना जरूरी है।

पोप ने कहा, “क्षमा माँगने से संवाद फिर से खुल जाता है और भ्रातृत्व के बंधन को फिर से स्थापित करने की इच्छा प्रकट होती है।”

क्षतिपूर्ति, “क्षमा के अनुरोध की प्रामाणिकता की गारंटी देता है, उसकी गहराई, उसकी ईमानदारी को प्रकट करता है, भाई के दिल को छूता है, उसे सांत्वना देता है और मांगी गई माफी को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है।”

इसलिए, पोप ने कहा, “यदि अपूरणीय को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, तो भी घाव को सहने योग्य बनाकर प्यार को हमेशा पुनर्जन्म दिया जा सकता है।”

पोप ने याद किया कि येसु ने संत मरिया मार्ग्रेट से मनुष्यों के पापों के कारण हुए अपराधों की क्षतिपूर्ति के लिए प्रार्थना करने को कहा। उन्होंने कहा, “यदि इन कृत्यों से उनके (प्रभु) हृदय को सांत्वना मिलती है, तो इसका अर्थ यह है कि क्षतिपूर्ति प्रत्येक घायल व्यक्ति के हृदय को भी सांत्वना दे सकती है।”

अतः पोप ने प्रतिभागियों से कहा कि उनका सम्मेलन येसु के पवित्र हृदय को दिलासा देने की इस सुंदर प्रथा के अर्थ को नवीकृत और गहरा कर सकते हैं, जिसे आज कुछ हद तक भुला दिया गया है या गलत तरीके से अप्रचलित माना जा रहा है।

पोप ने प्रार्थना की कि येसु के पवित्र हृदय की भक्ति की जयन्ती बहुत सारे तीर्थयात्रियों को प्रेरित करे, और तीर्थस्थल हमेशा आंतरिक शांति चाहनेवाले लोगों के लिए सांत्वना और दया का स्थान बना रहे।

पोप ने अपने लिए प्रार्थना का आग्रह करते एवं उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद देते हुए अपना संदेश समाप्त किया।